"प्रतिभा"
"प्रतिभा"
खुद को आईने में देखकर बताया कर,
तू क्या चीज है अहसास जताया कर।
मिट्टी की बनी सिर्फ एक मूरत नहीं हैं तू ,
प्रतिभा भरी हैं कुट-कुट कर ये दिखाया कर।
घना अंधेरा कहकर हैं तू घबराती क्यों,
दीया नहीं तू मशाल जलाया कर।
ये तूफ़ान क्या बिगाड़ेगा तेरा,
तू हवा के रुख़ को मोड़ आया कर।
बहुत हो गया तेरी बेबसी पे रोना,
खूबसूरत हैं तू चेहरे पे मुस्कान तो लाया कर।
ज़ालिम हैं दुनिया तो रहने दो इसे
इंसाफ का तू दीया जलाया कर।
काफिलों से ही नहीं पहचान बनती हैं तेरी,
खुद की प्रतिभा से ज़रा काफ़िला बनाया कर।