एक राग
एक राग
खाखी" कुछ ऐसी राग तुम गाओ
एक उथल पुथल रग रग में मच जाए
एक झोंका हवा का आए और
शत्रु के दिल में भी अमन-चैन भर जाए।
तड़प उठे एक लाल उस धरा का भी
एक लाल इस धरा का भी
क्यों त्राहि-त्राहि नभ तक छाए
क्यों सत्यानाश हो,
क्यों बरसे आग नफरतों की
क्यों हर जवानी भस्मसात हो
क्यों फटे इस धरा का वक्षस्थल
क्यों डटे तारे होकर टुक टुक
क्यों यह जोश में खो बैठे होश सभी
क्यों यह जवानी मे रो बैठे कालकूट हो सभी
क्यों अडिग शिला है यहां अंधे मूढ़ विचारों की
क्यों कोई छाती फाड़े
क्यों यह हर टुकड़ी अरबों का रोना रोवे
क्यों अंतरिक्ष में भी नाशक छोड़ें
क्यों ध्वनि तर्जन की मंडराये
नियम उप नियम कोई तोड़े ना
बंधक कोई किसी का होए ना
नाश महानाश कि यह ज्वाला हो जाए शांत
अब कोई और चिंगारी ध्वंस मचाए ना,
"खाखी" कुछ ऐसी राग तुम गाओ
एक उत्तल पुथल रग-रग में मच जाए
एक झोंका हवा का आए और
शत्रु के दिल में भी अमन-चैन भर जाए।।