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Shailaja Bhattad

Abstract Inspirational

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Shailaja Bhattad

Abstract Inspirational

प्रश्नचिन्ह

प्रश्नचिन्ह

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राग मल्हार में, कागज़ की नाव में। 

मखमली एहसास लिए, सावन की बहार में।

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धरती आकाश का मैल है छूट रहा । 

सावन की बूंदों में, जीवन भी संवर रहा।

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मां कश्ती तो, पिता पतवार बन जाते हैं ।

इस डगमगाती दुनिया में, 

अपना घर परिवार बखूबी संभाल लेते हैं।

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मन में कई प्रश्न उठे। 

कुछ प्रश्नों के उत्तर भी मिले। 

कुछ प्रश्न थे लेकिन, 

जिनके आगे प्रश्नचिन्ह ही बने रहे।



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