प्रश्नचिन्ह
प्रश्नचिन्ह
राग मल्हार में, कागज़ की नाव में।
मखमली एहसास लिए, सावन की बहार में।
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धरती आकाश का मैल है छूट रहा ।
सावन की बूंदों में, जीवन भी संवर रहा।
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मां कश्ती तो, पिता पतवार बन जाते हैं ।
इस डगमगाती दुनिया में,
अपना घर परिवार बखूबी संभाल लेते हैं।
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मन में कई प्रश्न उठे।
कुछ प्रश्नों के उत्तर भी मिले।
कुछ प्रश्न थे लेकिन,
जिनके आगे प्रश्नचिन्ह ही बने रहे।
