STORYMIRROR

Indraj meena

Romance

2  

Indraj meena

Romance

प्रोमिस डे

प्रोमिस डे

1 min
353


ये शाम भी कितनी तन्हा है

कुछ बहकी बहकी

कुछ खफ़ा खफ़ा

सूरज की डूबती किरणों में

ये सहमी सहमी सी लगती है

वो आईने में दिखी थी मुझे

कुछ खोई खोई

कुछ डरी डरी

चांद सी रोशन धरती पर

वो परी परी सी लगती है

मैं कैसे कहूं क्या मन में है

कुछ इश्क इश्क

कुछ प्रीत प्रीत

मैं डूबा हुआ उसकी यादों में

वो मेरी जहां सी लगती है

मैं कैसे करूँ इज़हार ए दिल

फिरूं शहर शहर

घूमा गली गली

मैं रब से मांगू हम साथ तेरा

तुम मेरे अक्स सी लगती हो।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Romance