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Indraj meena

Romance

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Indraj meena

Romance

प्रोमिस डे

प्रोमिस डे

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ये शाम भी कितनी तन्हा है

कुछ बहकी बहकी

कुछ खफ़ा खफ़ा

सूरज की डूबती किरणों में

ये सहमी सहमी सी लगती है

वो आईने में दिखी थी मुझे

कुछ खोई खोई

कुछ डरी डरी

चांद सी रोशन धरती पर

वो परी परी सी लगती है

मैं कैसे कहूं क्या मन में है

कुछ इश्क इश्क

कुछ प्रीत प्रीत

मैं डूबा हुआ उसकी यादों में

वो मेरी जहां सी लगती है

मैं कैसे करूँ इज़हार ए दिल

फिरूं शहर शहर

घूमा गली गली

मैं रब से मांगू हम साथ तेरा

तुम मेरे अक्स सी लगती हो।


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