STORYMIRROR

Devendraa Kumar mishra

Tragedy

4  

Devendraa Kumar mishra

Tragedy

प्रमोशन

प्रमोशन

1 min
353

निर्दोष हूं माई बाप 

बीनता हूं लकड़ी, बेचता हूं 

मेरे बच्चे हैं छोटे छोटे 

रहम करो, दया करो सरकार 

मैं नहीं हूँ नक्सली 

आदमी हूं गरीब 

साहब, मजदूर हूं, मुझे छोड़ दो 

और उसने ये कहकर उसके सीने में दाग दी गोली 

ऐसे ही छोड़ता रहा तो मिलने से रहे मेडल 

होने से रहा प्रमोशन.


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy