प्रकृति...।
प्रकृति...।
जल ही जीवन है,वृक्षों से हरियाली है,
सूर्य से प्रकाश है,चांद से दूर होती अंधियारी है,
घर मॉल आलिशान महल बढ़ाते स्थानों की शोभा है,
पर प्रकृति की सुरक्षा की जिम्मेदारी किसकी है?
सोचो जब निस्वार्थ प्रकृति हमें फल फूल देती है,
तो उसे हरियाली युक्त रखना किसका काम है?
हम जो गंदगी फैलाते हैं उसका परिणाम कौन भोगता है?
स्वयं हम इसलिए ध्यान रखें,
प्रकृति की सुंदरता को बनाए रखना हमारा काम है,
क्योंकि रहेगी पृथ्वी हरी भरी हरियाली युक्त,
तभी हम रह पाएंगे खुश और खुशहाल,
नहीं तो आए दिन आती रहेंगी प्राकृतिक आपदाएं,
जिस प्रकार हम अपना घर स्वच्छ रखते हैं,
उसी प्रकार अपनी गली मौहल्लों को स्वच्छ रखें,
पेड़ पौधे लगाए तो पृथ्वी हरी भरी रहेगी,
स्वच्छ हवा और वातावरण अनुकूल रहेगा,
जिससे हमें ही फायदा मिलेगा,
हम स्वस्थ रहेंगे बीमारियों से मुक्त रहेंगे,
भावी पीढ़ी संसाधनों औषधियों से युक्त रहेगी,
और जीवन सबका समृद्ध रहेगा,
सोचो समझो और समझाओ सबको,
धरती हमारी मां है,
उसको स्वच्छ रखने की जिम्मेदारी भी हमारी है,
रहेगी धरा स्वच्छ और साफ,
तो रहेंगे हम भी ख़ुश और खुशहाल,
नहीं आएगा कोई संकट,
नही पड़ेगा सूखा और अकाल,
औषधियों से संपन्न होगी भूमि,
उपजाऊ जमीन से होगी अन्न की पूर्ति,
हर घर संपन्नता युक्त होगा,
न होगी कभी भुखमरी की स्थिति,
सब रहेंगे खुशी से और झूमेगा आकाश,
बरसाएंगे बादल मेघा चलेगी हवाएं,
सब ओर हरियाली युक्त वातावरण होगा,
सब ओर धन धान्य समृद्धि की भरमार होगी,
क्योंकि जैसा हम प्रकृति को देंगे,
वो उसमे वृद्धि कर हमको प्रदान करेगी,
अब सोच लो बंजर भूमि या उपजाऊ जमीन,
फल फूल से आच्छादित हरियाली,
या बाढ सूखे का होते शिकार मानव,
क्या चाहिए आखिर तुम्हें इंसान?