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Vijay Kumar parashar "साखी"

Tragedy

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Vijay Kumar parashar "साखी"

Tragedy

प्रकृति से माफ़ी

प्रकृति से माफ़ी

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मत खेल इंसान तू इस प्रकृति से

मत खेल तू पेड़, पौधों, पक्षियों से 


जैसे विशाल डाइनासोर ख़त्म हुआ था

वैसे तेरा भी अस्तित्व खत्म हो जायेगा


हे मूर्ख इंसान इतना भी अंधा होकर,

तू मत खेल प्रकृति के इन नियमों से


एक कोरोना वाइरस क्या आया

तू तो इंसान बड़ा ही घबरा गया


हे पागल इंसान समय रहते तू सुधर भी जा

न तो खेल खत्म हो जायेगा तेरा इस धरती से


तूने पंछियों को बड़ा सताया था

कभी क़ैद में रखा,

कभी पका कर खाया था


आज तुझे उसी की सज़ा मिली है, रे

घर में कैद हो गया तू खुद की हरकतों से


आज ख़ुदा का हम इंसानों पर कहर बरसा है

इन पेड़ पौधों पंछियो का श्राप हम पर बरसा है


कर गुनाह से तौबा, माफ़ी मांग रो रोकर तू ख़ुदा से

कोई तो आँसू होगा,

जो उसे पसंद आयेगा करोड़ो अरबों से


कहां गये मनुष्य तेरे परमाणु हथियार सारे,

कहाँ गये,वो

रूस,अमेरिका,चीन दादा बनते थे जो सारे


ये प्रकृति है,

देना जानती है

बदला लेना भी जानती है

ले शपथ और माफ़ी मांग ले तू इस प्रकृति से



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