प्रकृति की सुन्दरता।
प्रकृति की सुन्दरता।
कविता : प्रकृति की सुन्दरता।
कब तक यूं ही प्रकृति का शोषण होगा,
प्रकृति से यूं छेड़छाड़ करके हरण होगा।
प्रकृति हमें ताज़गी से जीना ही तो सिखाती,
पर हम इंसानों को बिल्कुल शर्म नहीं आती।
जब-जब प्रकृति के नियमों का उल्लघंन हुआ,
इंसान के साथ-साथ पशु-पक्षियों का अंत हुआ।
बूंद-बूंद बारिश की टप-टप करती सुहानी लगें,
वो ही बूंदें सुनामी बनकर डरावनी भी तो लगें।
नयनों को मूंदे सरकार भी रामभरोसे जैसे यार,
प्रकृति का दोहन कर आफ़त बुलाएं बार-बार।
लगता है कि सृष्टि का पतन अब पास आ गया,
माया के लिए अंजान हो बुलाएं मौत का साया।