प्रकृति का प्रकोप
प्रकृति का प्रकोप
मानव जिस तरह से प्रकृति को नोच रहा है,
प्राकृतिक सम्पदा का सत्यानाश हो रहा है,
स्वार्थ में प्रकृति-गर्भ को खोदे ही जा रहा है,
पेड़ पौधों को नष्ट कर प्रदूषण फ़ैला रहा है,
भूकंप, भूस्खलन आदि को आमंत्रण दे रहा है,
विज्ञान की ओट में सामान्य ज्ञान भूल गया है।
अब प्रकृति का प्रकोप भी कहर बरपा रहा है,
जिसका खामियाजा मानव ही भुगत रहा है,
प्राकृतिक आपदाओं से हर वक़्त जूझ रहा है,
अतिवृष्टि, ओलावृष्टि के मंज़र में दहल रहा है,
मुफ़्त की प्राण वायु थी और अब खरीदता है,
प्रकृति को नष्ट कर पीढ़ियों तक पछता रहा है।