प्रकृति का दुलार
प्रकृति का दुलार
कर रहा मानव आर्तनाद,
समस्या है बड़ी भारी,
तेरी ही संतान है हम,
रूष्ट न हो प्रकृति प्यारी।
कर अपना सर्वस्व न्यौछावर,
तूने ममतावश विश्वास किया,
अपार स्नेह से सिंचित कर,
जीवन दिया परवरिश किया।
तुमने जरा सा प्रेम, परवाह चाहा,
स्वार्थी मन संपदा पर ललचाया,
कर्तव्य स्वयं का बिसराकर भी
अधिकार सदा तुम पर जमाया।
प्रकृति की सहनशीलता का,
फायदा खूब उठा इतराया,
अतुलनीय सौंदर्य को आहत
कर अस्तित्व को चोट पहुंचाया।
लालच में अंधा हो मनुष्य ने,
तकलीफों से नजर हटाया,
हो शक्ति घमंड में चूर,
चेतावनी तेरी हँसी में उड़ाया।
अभी तो तुमने जरा सी करवट बदली,
देख ले इतने में ही मानव अश्क बहाता है,
ऐसे उलझ गया है जीवन उसका,
कुछ सोच समझ नहीं पाता है।
समस्या है अब भी मानव विचार करें,
हिसाब अपने कर्मों का स्वयं ही वह करें,
गलतियां जो हो गई है उनको सुधार लें,
प्यार देकर सृष्टि को उसका दुलार ले।