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Dhan Pati Singh Kushwaha

Tragedy

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Dhan Pati Singh Kushwaha

Tragedy

परिवर्तन का संकेत तो नहीं?

परिवर्तन का संकेत तो नहीं?

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भ्रम फैला कर रचा जा रहा,

बड़ा ही सुनियोजित षड्यंत्र।

रक्षा करने के नाम पर ही है,

असुरक्षित हो रहा है लोकतंत्र।


विधि निर्मात्री संसद के कानून को,

नहीं देने दे रहे हैं कोई भी सम्मान।

खामी तो बतलानी बिल्कुल नहीं,

बस वापसी की जिद रखी है ठान।


भाग था जिनके चुनावी घोषणापत्र में

इन्हीं कृषि कानूनों को देश में लाने का।

भोले किसानों को भड़का के आज वे

उकसाते हैं प्रतियों को इनकी जलाने का।


संशोधन के सरकारी प्रस्तावों को तो,

नहीं बिल्कुल ही करने दे रहे हैं स्वीकार।

इनकी वापसी को छोड़ अन्य कोई भी

प्रस्ताव मानने को नहीं है जरा भी तैयार।


संसद के कानूनों को नहीं रहें हैं मान,

कल जिद होगी अब न मानेंगे संविधान।

बिना तर्क अस्वीकृत भी हैं कर सकते,

कर का या किन्हीं बिलों का भुगतान।


वातावरण अराजकता जैसा लगा है लगने,

स्थापित व्यवस्था को जो नहीं रहे हैं जो मान।

चक्रीय व्यवस्था परिवर्तन का संकेत तो नहीं?

होने जो जा रहा अब लोकतंत्र का होने अवसान।


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