परिवार
परिवार
रिश्तों की पोटली परिवार जैसी होती है
प्रेम और मर्यादा की डोरी से बंधी होती है।
वर्णमाला के स्वरों जैसे बच्चे चहकते हैं
व्यंजन से पिता उनको अर्थपूर्ण बनाते हैं।
माँ की भूमिका भी रेखा जैसी होती है
जो साथ बाँध अक्षरों को शब्द एक बनाती है।
ये रिश्ते भी दिल के कोमल बड़े होते हैं
पोटली में बंद अक्षरों के जैसे होते हैं।
कभी आधे से अक्षर सँग प्यार बन जाता है
कभी पूरे पूरे अक्षर मिलके नफरत हैं बनाते।
दोहराते हैं अक्षर तो मामा चाचा बनते हैं
माँ जैसी जो हो जो तो मासी उसे कहते हैं।
बंधी जो रहती डोरी वो प्यार की इस पोटली पे
जाने के बाद भी ये रिश्ते ज़िंदा रहते हैं।