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Renu Sahu

Classics

4  

Renu Sahu

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परिवार

परिवार

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परिवार होता बरगद की तरह, 

जड़े जिसकी बुजुर्ग सभी |

सोख अच्छाई करते पोषण,

तने पत्तो की करते उचित पूर्ति |


छोटा परिवार, सुखी परिवार 

पंक्ति मन भावन लगती है |

एकल नहीं संयुक्त परिवार,

रिश्तेदारी जिसमे कई होती है |


वो कैसा परिवार कहो ?

जिसमे दादा न दादी है |

जो वंचित बचपन के इन प्यार से, 

हर खुशिया फिर आधी है ।


रहते कई लोग जहाँ,

बंधकर अपनी मर्यादा से ।

प्यार भी तकरार वहां, 

फिर भी बंधे अपनो के धागो से ।


खुशिया हो तो दीवाली मनती,

सबके लिए भाव एक सा ।

हो कितना भी दुःख घनेरा, 

मिलकर बाँट लेते थोड़ा थोड़ा ।


परिवार ही तो सिखलाता,

स्वार्थ से आगे भी जीना ।

मैं को बिल्कुल त्याग कर, 

हम से नाता जोड़ना ।


अनुशासन, कर्तव्य, कर्म, सब 

परिवार ही सिखलाता ।

समर्पण त्याग अपनापन,

परिवार की नीव और  यही परिभाषा ।


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