परिवार
परिवार
परिवार होता बरगद की तरह,
जड़े जिसकी बुजुर्ग सभी |
सोख अच्छाई करते पोषण,
तने पत्तो की करते उचित पूर्ति |
छोटा परिवार, सुखी परिवार
पंक्ति मन भावन लगती है |
एकल नहीं संयुक्त परिवार,
रिश्तेदारी जिसमे कई होती है |
वो कैसा परिवार कहो ?
जिसमे दादा न दादी है |
जो वंचित बचपन के इन प्यार से,
हर खुशिया फिर आधी है ।
रहते कई लोग जहाँ,
बंधकर अपनी मर्यादा से ।
प्यार भी तकरार वहां,
फिर भी बंधे अपनो के धागो से ।
खुशिया हो तो दीवाली मनती,
सबके लिए भाव एक सा ।
हो कितना भी दुःख घनेरा,
मिलकर बाँट लेते थोड़ा थोड़ा ।
परिवार ही तो सिखलाता,
स्वार्थ से आगे भी जीना ।
मैं को बिल्कुल त्याग कर,
हम से नाता जोड़ना ।
अनुशासन, कर्तव्य, कर्म, सब
परिवार ही सिखलाता ।
समर्पण त्याग अपनापन,
परिवार की नीव और यही परिभाषा ।