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अमित प्रेमशंकर

Classics Inspirational

5.0  

अमित प्रेमशंकर

Classics Inspirational

कुम्हार की माटी

कुम्हार की माटी

1 min
337


 हे कुम्हरौ तुम्हरी आदत कैसी

ज्ञानी बन तू मुरख कहाय।

जे न पूछे इ माटी के

उ माटी से दिल क्यों लगाय।।                        


खूब संवारे खूब बजावे                         

मंत्र पढ़-पढ़ उसे सिखाय।                        

जे न पूछे इ माटी के                

उ माटी से दिल क्यों लगाय।।


माटी तो माटी ही भला

फिर लिया इसे तू क्यों अपनाय।

जे न पूछे इ माटी के

उ माटी से दिल क्यों लगाय।। 


बड़े प्यार ही भावुक मन से

कुम्हरौ आपन दी भेद बताय।                       

जे न पूछे इ माटी के

उ माटी से दिल हम क्यों लगाय।।


मूरख मुझे कहत हो सेठ तुम

तुमसे बड़ा मूरख कौन कहाय।

छोड़ देंगे सब साथ तुम्हारा

अंत समय में यही सुहाय।।                           


क्षमा करो हे कुम्हरौ मुझे

मुझसे बड़ी भूल भव आय।                           

गिर चरणों में नीर बहावत

सेठ रो-रो के पछताय।।


करत कुम्हरौ सेठ से वंदन

रो-रो के क्यों नीर बहाय।

बात समझ में आती है तो

जल्द माटी को लो अपनाय।।


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