लक्ष्य भेदन
लक्ष्य भेदन
सुपरिचित होने के लिए
आवश्यक है विशिष्ट व्यक्तित्व,
तभी सामाजिक जीवन में प्रज्ज्वलित
होगा अपनी प्रतिभा का महत्व अस्तित्व।
सबका होना चाहिए
एक निर्धारित लक्ष्य,
यही है जीवनचर्या का
कृतित्वपूर्ण कीर्तिमान कार्य।
सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर पाण्डुपुत्र अर्जुन
हैं धनुर्विद्या में प्राज्ञ प्रज्ञ,
असाध्य अभेद्य लक्ष्य भेदन में हैं
कौशलपूर्ण वरिष्ठ विशेषज्ञ विज्ञ।
महारथी पार्थ हैं धनुष
समबन्धीय युद्धविद्या में पारंगत,
गुरु द्रोणाचार्य के प्रशिक्षण
आशीर्वचन द्वारा तीरंदाज़ी में थे अवगत।
बाल्यावस्था में सव्यसाची हुए
खिलौने पक्षी के चक्षु भेदन में सफल,
युवावस्था में काम्पिल्य के द्रौपदी स्वयंवर के
असामान्य मत्स्य-भेदन में प्राप्त किए अभीष्ट फल।
परशुराम शिष्य महारथी कर्ण थे
अन्यतम श्रेष्ठ धनुर्धारी,
ज्येष्ठ कौन्तेय थे अपने उद्देश्य
साधन के कुशल अधिकारी अध्ययनकारी।
लक्ष्यभेद अभ्यास में व्यवहृत होता है
ऐक्यकेन्द्रिक बहुवृत्त विशेष पटरा,
सुदृढ़ विश्वास से निशानेबाजी में अभिनव
बिंद्रा निर्मित किए विश्वस्तर में प्रतिष्ठा का पिटारा।
अत्यंत अनिवार्य है अपने लक्ष्यसाधन
हेतु मन का केन्द्रीकरण,
अभिनिवेश सह निरंतर केन्द्रीभूत एकाग्रचित्त
साधना से होगा उद्देश्य का उत्कृष्ट भेदकरण।