परिवार में नारी की वृहद भूमिका
परिवार में नारी की वृहद भूमिका
पारिवारिक जीवन में स्त्री और पुरुष
दोनों के हितों में टकराव उपस्थित रहते हैं,
परिवार की निर्णय प्रक्रिया में सहयोग ज़रूरी है,
सहयोग भंग होने पर हानि होती दोनों पक्षों की।
पारिवारिक व्यवस्था में सहयोग और द्वंद्व
उपस्थित रहते हैं एक साथ, उनकी
तथ्यात्मक और आदर्श मूलक समीक्षा होनी चाहिए
दोनों पक्षों का हित समाधान निकालने में।
परिवार के जीवन की सबसे बड़ी विशेषता
मिल जुलकर एक घर में रहना है,
टकरावों के बात करना अनुचित घोषित हो जाता है
कई बार अभाव भोग रही नारी चुप रह जाती है।
उसे यह भी अनुभूति नहीं होती कि
उसे कितना अभाव झेलना पड़ रहा है,
पारिवारिक विषमताओं ने सदियों से
नारी जीवन को अंधकारमय बनाया हुआ है।
संपत्ति पर नारी का अधिकार न होना
नारी की आवाज़ को दबा देता है ,
नारी की सशक्त स्वतंत्र वृहद भूमिका
इन विषमताओं को कुंठित कर सकती है।
नारी पर विशेषकर बच्चों के और
यहां तक कि पुरुषों के जीवन भी निर्भर करते हैं,
माँ द्वारा बच्चों के कुशल क्षेम को महत्व दिया जाता है
नारी की वृहद भूमिका सुखद परिवर्तन ला सकती है।
