प्रीत
प्रीत
ओ मेरी प्रीत तुम चली गई
जीवन के संगीत लेकर
छोड़ गयीं कुछ धुँधली सुध
ओ मेरी प्रीत तुम चली गई
जीवन का महक
हिमालय की चोटी सा ठंडक
झड़ने का नेत्र नीर सब ले गई
ओ मेरी प्रीत तुम चली गई
उपवन का सौंदर्य
मन की मादकता
नयन का विकल
हाथों का चुंबन
सब छोड़ गई
ओ मेरी प्रीत तुम चली गई
ओ मेरे प्रीत
तुम्हारी सदृश देख
चंदन सा घिस रहा हूं
भांग सा पीस रहा हूं
शिव सा नीलकंठ बन
विरह का विष पी रहा हूं
ओ मेरी प्रीत तुम चली गई ! !
ओ मेरी प्रीत
सांसों की गर्मी
जीवन की नर्मी
होठों का मखौल
सूरज का लालिमा
चाँद की चमक
सब ले गई
जीवन को वीरान कर
खंडहर बस छोड़ गई
ओ मेरी प्रीत तुम चली गई !