प्रेरणा
प्रेरणा
चिंगारी हुई एक छोटी लकड़ी में
और डर लग गया पूरे जंगल को
किसान ने ठान लिया जब, तब
डर लग गया उस जमीन बंजर को
दिया जलाया तो डर गया अंधेरा
मदारी ने लकड़ी से आवाज की तब
डर लग गया साँप को
कुछ अनजाना बनकर,
कुछ गलत काम करके
जब देखा आईने में तो डर लग गया
अपने आप को
कैसे मिटाई जाएगी
मुझ पर पडी हर गलत छाप को
खैर छोड़ शुरू कर अच्छी जिंदगी
और डाल दे कहीं ऐसे विचार खाक को...
