प्रेरणा का दीप तुम हो।
प्रेरणा का दीप तुम हो।
पंथ को करती प्रकाशित
नेह भीगी वर्तिका सी
प्रज्ज्वलित स्मृति तुम्हारी।
गीत कविता रूप में जो
रच रही है लेखनी ये
सत्य है कृति है तुम्हारी।
मुक्तकों को जन्म देती
मानसर की सीप तुम हो
प्रेरणा का दीप तुम हो।
रश्मि रूपी सूर्य प्रतिदिन
जिस तरह से भूमि तल पर
धूप बनकर फैल जाता।
धूप बाती प्रज्ज्वलन से
ज्यों सुगंधित धूम्र बनकर
फैल चहुँदिशि तैल जाता।
भाव झूलों पर झुलाता
मन जमुन तट नीप तुम हो।
प्रेरणा का दीप तुम हो।