STORYMIRROR

अच्युतं केशवं

Romance

4  

अच्युतं केशवं

Romance

प्रेरणा का दीप तुम हो।

प्रेरणा का दीप तुम हो।

1 min
259

पंथ को करती प्रकाशित

नेह भीगी वर्तिका सी 

प्रज्ज्वलित स्मृति तुम्हारी। 


गीत कविता रूप में जो

रच रही है लेखनी ये

सत्य है कृति है तुम्हारी। 


मुक्तकों को जन्म देती

मानसर की सीप तुम हो

प्रेरणा का दीप तुम हो। 


रश्मि रूपी सूर्य प्रतिदिन

जिस तरह से भूमि तल पर

धूप बनकर फैल जाता। 


धूप बाती प्रज्ज्वलन से

ज्यों सुगंधित धूम्र बनकर

फैल चहुँदिशि तैल जाता। 


भाव झूलों पर झुलाता

मन जमुन तट नीप तुम हो।

प्रेरणा का दीप तुम हो।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Romance