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Swati Kashyap

Romance Inspirational

4.7  

Swati Kashyap

Romance Inspirational

प्रेम

प्रेम

2 mins
282


सब्र, सुकूं, यकीं है

भोर की मुस्कुराहट है

ढलती सांझ की बंदगी है

रूह से निकली दुआ है....


शायद...प्रेम मेरी इन्हीं पंक्तियों जैसा है

या फिर खुबसूरत चांदनी सा जो

अपनी मनमोहनी छटा से

अनंत नभ को रौशन कर रही है


या फिर दिव्य भोर की बेला सा जो

सुर्ख लाल चुनर ओढ़ धरा पे

उतर अपनी लाली से हर ओर प्रीत,

यकीं, उम्मीद का अलख जला रही है


या फिर सागर की गहराइयों सा जहां

प्रेम ना जाने कितने नज्मों में पिरोकर भी

गहन है, विस्तृत है....

कैसे समेंटूं प्रेम को कुछ शब्दों में....

होठों की साज बन जाऊं या सात सुरों की सरगम

या पलकें बिछाए प्रेम दीवानी हो जाऊं...


किन किन भावों को शब्दों से श्रृंगार करूं

या बस आंखों से कह जाने दूं...

कशमकश में हूं आज...

मन को कैसे समझाऊं

जो मुददतो बाद मुस्कुराया है.


मन की गलियों में झांका तो महसूस हुआ...

प्रेम का एहसास ही रोम रोम पुलकित कर गया.

ना जाने कितने रंगों की बौछारों से भीगा है प्रेम...

मां के आंचल में समाया प्रेम...


कान्हा की बांसुरी से छलकता प्रेम...

राधा के समर्पण सा प्रेम...

भक्ति में डूबी मीरा सा प्रेम या

अर्धनारीश्वर जैसा प्रेम.


सात वचनों से बंधा अटूट प्रेम या

कवियों की कल्पना है प्रेम,

शायरों की शायरी है प्रेम या फिर

अंगराई लेती शामों की गजल है प्रेम...


थोड़ा ठहरकर ख्याल आया...

क्या प्रेम डायरी के पन्नों में

बंद सूखे फूलों सा है या आज का

गुनगुनाता तराना है या कल की सौगात है प्रेम....

बेशक बयारों का रूख मोड़

पतझड़ में बहार है प्रेम....


पर जब भी प्रेम की गहराई में उतरी,

प्रेम पहेली सी लगी.

अक्सर पूछतीं हूं खुद से क्यों

आज प्रेम कहीं खो सा गया है...


शायद साझा करना, एक राह चलना,

निश्छल प्रेम तो बस बातें रह गई हैं. प्रेम...

"पाना" इसी शब्द में सिमट गया हैं...

प्रेम बांटना तो जैसे भूले जा रहें हैं.


सोच और नजरिया बदलकर

हम प्रेम सागर में हौले हौले खुद को डुबो दें....

बेशक आज के माहौल में प्रेम डगमगा रहा है....

पर प्रेम इतना निर्बल भी नहीं कि

जरा सी जख्म से रिसने लगे....

जिंदगी की नींव है प्रेम....कण कण में है प्रेम....

दीये की जोत है प्रेम....

इबादत है प्रेम....

यकीनन सादगी में लिपटा पावन है प्रेम....


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