प्रेम
प्रेम
सृष्टि जब रची गई, प्रेम भी रचा गया
सृष्टा द्वारा दिलों में प्रेम भी रखा गया।
प्रेम की परिभाषा सबकी अलग-अलग
प्रेम की अनुभूति सबकी अलग-अलग
प्रेम राधा ने किया कृष्ण को भुला न पाई
प्रेम मीरा ने किया कृष्ण से कर ली सगाई,
प्रेम सूरज का पृथ्वी से सुबह मिलने आये।
प्रेम चकोर का चांद से मिलने को ललचाये।
प्रेम मां का बच्चों से, करती सर्वस्व निछावर
प्रेम भक्त ईश्वर का, भक्त हृदय में बसते ईश्वर
प्रेम को मिटा न पाती देश काल की दूरियां,
दूर रह कर भी पलती दिलों में नजदीकियां।
प्रेम दिल का भाव है बुद्धि का तर्क नहीं
प्रेम में जाति पाति और धर्म का फर्क नहीं
प्रेम रूह का रूह से जन्मों जन्मों का नाता है,
शिव का पार्वती प्रेम जन्म जन्म का नाता है।
प्रेम सच्चा हो तो राहें भी निकल आती हैं,
सृष्टि की शक्तियां एक दूजे से मिलवाती हैं।
कबीर प्रेम ढाई आखर पढ़े सो पंडित बने
रहीम प्रेम धागा जो टूटे तो फिर गांठ बने।।