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Krishna Khatri

Abstract

4  

Krishna Khatri

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सायली छंद -- कृष्णा खत्री

सायली छंद -- कृष्णा खत्री

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तेरे 

हुस्न की 

चांदनी में खिला

ये सारा 

चमन।


परवरदिगार

तेरी खातिर 

छोड़ दिया सब 

अब आके 

मिल।


इश्क 

मेरा सूफियाना 

इबादत खुदा की

सुन मेरे 

मौला।


तासीर 

मुहब्बत की 

खींच लाएगी तुझको 

दर तक 

मेरे !


जिन्दगी 

आसान नहीं 

जीना होगा तुझको

बड़े सलीके

से।


तेरी 

खातिर मैंने 

छोड़ दिया संसार 

तू निकला 

बेवफ़ा।


भूलना 

हल नहीं 

किसी मसले का 

याद रखना 

बेहतर।


बुलंद 

रहे तकदीर 

हर मुश्किल आसान 

जान लीजे 

इतना।


परिभाषा 

रिश्तों की

कौन कर सका

है जज़्बाती

अहसास।


तेरे 

इश्क की

रहनुमाई में महका

प्यार का

फूल।


मुझे 

फुर्सत कहां

देखूं तुम्हें या

मौसम को

देखूं।


होता 

अंत इसका

इसी ज़मीन पे

फिर कैसा

गर्व।


जिन्दगी 

है मेरी 

सफर भी मेरा

तू परेशां

क्यूं ?


जाकर 

वापस कोई 

कभी लौटता नहीं 

फ़िज़ूल है 

इंतज़ार !


तुमने 

दे दिये 

सारे ग़म मुझको

अब जीयूं 

कैसे ?


कोई 

मिलता नहीं 

दूसरे की खातिर 

मिलते अपने

लिए ! 


मैं 

परेशां ग़मजदा 

हाल-बेहाल भी 

क्या करूं 

अब !


तुम 

चले आओ

तकाजा मौसम का 

रहा ना 

जाएगा।


जज़्बा

दोस्ती का 

मुबारक हो तुमको

बनाए रखना 

इसको।


कहूं 

कैसे तुमको 

दिल की बात 

रोकती लाज

मुझे।

 

मुझे 

नहीं बताना

मेरी खामियां कभी

बना रहेगा

भरम।


कोई 

तमन्ना नहीं

फिर भी ख्वाहिशें

पीछा नहीं 

छोड़ती।

 

भारत

भूमि का 

कोई टुकड़ा नहीं

है सारा 

जहां !


रुकावटें 

आती है 

हौंसला जरूरी पार 

करने के

लिए।


तुमने 

भुला दिये 

वो सारे वादे 

जो हमसे

किए !


शराब 

छोड़ कर

अपना लो मुझे 

कहती है

चाय।

 

मां 

कहती मेरी

अपना ख्याल रखना 

बच्चे के 

लिए।


जीतने

के लिए

ज़रूरी है हौंसला 

सिर्फ शक्ति 

नहीं।


फूल 

कागज़ के 

खुशबू नहीं देते

देते महज़

खूबसूरती।


केवल

गंगा-स्नान 

करने से परमात्मा

नहीं मिलता 

कभी।


कर्ज

रिश्तों के 

रहते मुहब्बत में 

चुकाएं नहीं 

चुकते।


प्रयागराज 

तो है 

अल्लाह-बंदो के 

रिश्तों का 

संगम।


तुमने 

बिना बात 

दी मात मुझे 

पछताओगे तुम 

भी।


पहली

किरण तू 

उगते सूरज की

कर भोर 

उजली।


जिन्दगी

छोटी बहुत 

जी भर जीयो

मिलेगी ना 

दोबारा।

 

मुहब्बत 

तमाशा नहीं 

इबादत खुदा की 

पाकीज़गी से 

करो।

 

ऐसे

नाराज क्यों 

नाराजगी करती सितम 

मुझपर बेशुमार 

जानेमन।

 

 जो 

गुज़र गया 

सो गुज़र गया 

आगे की 

सोच।

 

हमने 

छोड़ दी 

ज़िन्दगी तुम्हारे लिए

कहां हो 

तुम।


दिल्लगी

ना समझना 

ये दिल की 

लगी है

सनम।


अकेलापन 

आदत नहीं 

मजबूरी है मेरी  

मगर स्वीकार 

नहीं !

 

जब 

आई तू 

आंचल में मेरे 

लगी सुरसरि 

बहने।


दुनिया 

मेरे पीछे 

पागल बनती रही 

मैं बनाता 

रहा।


पहुंची 

हुई है 

ये दुनिया सारी

कौन किसको

पूछे।


खामोशी

गूंजती है 

बड़े सलीके से 

आवाज़ नहीं 

होती।


जिन्दगी 

बिलखती रही 

रात भर ऐसे 

दर्देइंतेहा ना

रही।

 

हैवानियत 

का शिकार 

रहा मैं हरदम

कैसे रहूं  

अब।


कब 

शराब लगी 

पीने मुझको हरपल

शराबी बनता 

गया।


अगर 

जीतना कुछ 

तो जीतो अर्थ

पा लोगे

सब।


इन्सान 

हूं मैं 

फरिश्ता नहीं मौला

संभालते रहना 

मुझको।

 

श्रृद्धा 

और प्रेम 

दोनों अलग - अलग 

फिर भी 

एक।


सन्मार्ग

पर चलना 

जीवन का उद्देश्य 

होना चाहिए 

 सदा।


आत्मा

सदैव जानती 

सही -गलत क्या

इसलिए उसकी 

सुनो।

 

पसंद 

आंखों की 

इस तरह बदलेगी 

पता न 

था।

 

दिल

चाहे तुझे 

करे ख्वाहिश तेरी 

अब तो 

मिल !


जंग 

छिड़ी है 

दिल से मेरी 

मुहब्बत है 

तुमसे।


कुमकुम 

के संग 

चावल का योग 

सजे माथे  

पर।

 

हम 

किसके साथ 

महत्व रखता खास

इससे बनती

पहचान।


चांद 

सितारों की 

दोस्ती जगमगाती है 

सारी दुनिया 

में।


चांद 

सितारों की 

तरह जगमगाते रहो  

हर पल 

तुम।


दो 

जून की

रोटी चाहिए मुझको 

कुछ और

नहीं।


मीरा 

के मोहन

नटवर नागर दिवाने  

तुम राधा

के।


यशोदा 

मैया ढूंढ़े

अपने कन्हैया को

कहां गयो 

लाल।


संग

ज़िन्दगी के 

अगर तुम होते 

ग़म न 

होते।

 

अधूरे 

ख्वाबों की

ताबीर लेकर ही

तुम मिले 

होते !


कश्मीर 

से कन्याकुमारी 

तक सनम है

तू ही

तू !


ईश्वर

ने दिखाई 

राह दूर तलक 

था मगर 

अंधेरा ! 


भरोसा 

भगवान में 

तो जिन्दगी आसान 

लेकिन मुश्किल

सबकुछ।


मां 

मत तोड़ 

चूड़ियां मेरी यही

जीने का 

संबल!


तुमने 

जाते वक्त  

कुछ कहा होता 

सुधर जाते 

हालात।

 

पिया

फलक से 

उतार लूं तुझको 

इस जमीं 

पर।


ज़मीं

पर मैं

तू फलक पर 

कैसे मिलूं 

तुझसे !

 

क्यों 

मुश्किल में 

अपना ये जहां 

बता ऐ 

मौला।

 

जिन्दगी

बिखर गई 

रेशा-रेशा बनके 

अब सिलूं

कैसे ?


खुदा 

करूं इबादत 

तेरी या उसकी

उसने जन्म

दिया !

 

खुदा 

मैंने तुम्हें 

कभी नहीं देखा

देखी है 

मां !


तस्वीर

में सिमटी 

तुम्हारी छबि कुछ 

कहती है

मुझसे!


पूरी 

जिन्दगी तुम

घूमते रहे दुनिया

अब लौटोगे 

कब ?


झगड़ा

चलता रहा 

जिस्मोजान में हरदम

बेजान दोनों 

अकेले।

 

चिरागेदिल

रौशन करो 

कोई बात बने 

है घना 

अंधेरा।


खुद 

से मुलाकात 

करके देखो साफ 

हो जाएंगे 

रास्ते।


मेरे

ख्वाबों का 

अंबर बुला रहा 

आओ उड़ 

चलें।


खुशियों 

के समंदर 

में गोते लगाते

हम तुमसे 

मिले।


सब 

जायज है 

तेरे इश्क में 

बेवफाई ना

करना।


बड़ी 

मुश्किलों से

मिलती है मुहब्बत 

संभालके रखना 

इसे।


दुश्वारियां 

रिश्तों में

कभी न रखना

गांठ पड़ 

जाएगी।


अच्छा 

नहीं है 

प्यार में किस्सा

टूट जाएगा 

रिश्ता।


सियाराम 

के लवकुश

शिष्य वाल्मीकि के

 पारंगत धनुर्धर

दोनों !


लक्ष्मणरेखा

पार हुई

हुआ सियाहरण और 

राम-रावण

युद्ध।


लाज 

आंखों की 

ले डूबी मुझको 

खो दिया 

प्यार।


द्रुपद 

की द्रौपदी

पांचाल की पांचाली  

हुआ उसका 

चीरहरण !


उस 

गुमशुदा को 

कैसे ढूंढ़े जो 

साथ रहता

हरदम !


आधी 

रात के

मंज़र में क्यों

सुबह ढूंढते 

हो ?


जन्नत

बनाना है 

दुनिया को तो 

इन्सान बनो 

तुम !


पत्थरों

के शहर

में सब पत्थर 

ये मुहब्बत 

भी।


सनम

आज तुझमें 

वो बात कहां 

जो थी 

कभी।

 

पनीली

आंखों के

खुमार में डूबा 

बांसुरी संग 

कन्हैया।


मोर 

मुकुट की 

देख छबि निराली 

राधा भई 

बावरी !


डार 

कदम की 

बैठ बांसुरी बजाए 

कान्हा झूमे 

राधा।


शेषनाग

पर नाचे

कन्हैया ताता थइया 

बजाए बांसुरी

मनमोहिनी।


कंस

दमन किया 

मथुरा स्वतंत्र हुआ  

बना कन्हैया 

गौरवशाली।

 

अपने 

हिस्से की 

थोड़ी सी ज़मीं 

दे दो 

मुझे !


कभी 

आसमान होगा 

मुट्ठी में मेरी

देखेगा जमाना

मुझे !


गोधूलि

बेला में 

आता रंभाता पशुधन 

धूल उड़ाता 

सोंधी !


मोहन

की मुरलिया 

गोकुल की गोपियां

दोनों में  

खींचातानी !


उतरते 

लाखों सपने

दिल के दरवाजे

लेकर बारात

मेरी !


बिछडना

मुझसे मेरा 

सजा जिन्दगी की 

भोगता है 

दिल !


खुशियों 

के समंदर 

ग़मों के गोते 

बीच में 

तुम !


आवारगी

को ऐसे 

बदनाम ना कर

यही है 

जिन्दगी !


मौसम

बारिशों का 

उतरता मुझमें बरसती

बूंदों के

साथ !


ऐसे

आना तुम

दरवाजे को भी 

ना खबर 

हो !


मौसम 

बदल जाते 

हालात नहीं बदलते 

जरूरी इनका

बदलना !


तुम्हारी 

चाहत में 

वो बात नहीं 

जो थी

कभी !


अयोध्या 

की गलियां

रुनझुन सोहर गाती 

राम लला

के !


रुतबा

तेरा भी

है मेरा भी

कमजोर ना 

समझ !

   

मुस्कराहट

 तेरे लबों  

पर थिरकरते हुए

कुछ पूछती 

मुझसे !


रहता

जात,-बिरादरी 

के संबंधों में 

भेदभाव का 

मौसम !


जय

गजानन गजवदन

गणपति बप्पा मोरया

प्रथम पूजनीय

तुम।


प्रथमेश

हो तुम 

विघ्नहर्ता भी कहते 

तुमको सब

जन।


मंगलकरणा

सुखकर्ता दुखहर्ता

रिद्धि-सिद्धि -दाता 

गणेश विनायक

लंबोदरा।


तुम्हारे

चेहरे पे 

खिले हैं मेरी 

मुहब्बत के

रंग।


सपनों 

का सागर 

लहराता रहता हरदम 

डूबते-उतराते 

तुम।


गुज़रे 

हरपल तुम्हारा

उस गली से 

जहां रहे

सुकून।


आरती 

अज़ान अरदास

करती भेदभाव नहीं 

फिर हममें

क्यूं ?


मंदिर 

मस्जिद गिरजाघर  

गुरूद्वारा हमारा तो 

फिर झगड़ा 

कैसा !


बीज 

नफरतों के

बोये तुमने ये

फसल भी 

तुम्हारी !


 उम्मीद 

मरहम की 

इलाज नमक से 

जल उठे

जख्म !


वो 

कसम तुम्हारी

उड़ी आंधियों में

हाथ मलते 

रहे !


सियासतदां

कर गद्दारी 

देकर धोखा खोखला

किया वतन

को !


लड़ते

रहे जिस 

ज़मीं के लिए 

बनी वो 

 कब्र !


कभी 

मुश्किल थी 

जिन्दगी तुम मिले 

आसन हो 

गई !


दुआ

चमकते रहना

रोशन करते रहना 

सारा जहां 

तुम !


मुहब्बत

की खातिर

मुहब्बत बन गए 

मुहब्बत न

मिली।


सजदा 

करूं तुम्हारा

मैं हरदम सनम

लेकिन दूर 

कितने !


निशा 

देती निमंत्रण

ऐ चांद - सितारों 

चले आओ 

यहां !


ख्वाब

टूट गए 

एक पल में

छूट गया 

सब !


तुझमें 

समाया हुआ 

है ब्रह्माण्ड सारा 

और मुझमें 

तू !

 

आकाशगंगा

के रास्ते

साथ चलो तुम 

हो जाऊं 

मालामाल !


किया

काम तमाम 

इंसानियत का तुमने 

अपनेपन का 

भी !


धूमिल

ग्रह-नक्षत्र

और चांद - सितारे 

अनुपस्थिति में 

तुम्हारी !

 

मधुर 

मीठा रसीला 

है प्यार तुम्हारा

लेकिन तुम 

कहां ?


इश्क

में जब 

छोड़ जाते अपने 

मर जाता

दिल !


वाह 

री किस्मत 

मुहब्बत मिली मगर 

महबूब न 

रहा ! 


आत्मा

परमात्मा का

किस्सा युगों पुराना 

फिर भी

नया !


ये 

कहानी है 

दो निगाहों की 

जो है 

हमारी !


था 

बहुत कुछ 

हमारे बीच मगर

कुछ नहीं 

आज !


महिमा

तेरी अपरम्पार

तू आर -पार 

कर मेहर

अपनी !


हजारों 

चांद चमके

रुखसार पर तेरे

रोशन सारा

जहां !


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