प्रेम फिर से
प्रेम फिर से
उम्र बीत गई कि फिर से प्यार हुआ
एक नई ज़िंदगी का हमकों एहसास हुआ
बीत चुकी उम्र हमारी तो हर्ज क्या है
जमाने की नजरों में अब प्यार क्यों एक गुनाह है
क्या जिम्मेदारी के साथ खत्म हो जाती इच्छा भी
किसी के प्रेम भरी नजर क्यों एक चुभन बन जाती
इस उम्र का प्रेम तो बंधा होता हैं एक विश्वास से
जो बन जाता हैं एक सहारा इस तन्हाई में
वृद्धावस्था का प्रेम होता हैं मित्र हमारा
जो जीवन की सांझ में रहता है हमारे साथ
बांटता है मन के विचारों को मेरे साथ
आखिर क्यों एक अपराध है यह
वृद्धावस्था का प्रेम।

