प्रेम का इज़हार
प्रेम का इज़हार
इश्क़ हुआ था मुझे, उस अनजान परी से,
हैराँ, परेशान रह गया , कैसे करूं ?
'' इश्क का इजहार ''उस नाज़नीन से ,
लगता, मेरे जीवन में ग़र वो.... आ जाए ,
आते ही उसके ,मेरी किस्मत चमक जाए।
रात -दिन वो ! दिवा स्वप्न देखता रहा
मन ही मन ' इज़हार ए इश्क़ 'करता रहा।
आज को कल पर, टालता रहा।
आकर गुजर गई, वो मेरे करीब से ,
धूप में ठंडक का झोंका बन गयी नसीब से।
जब देखा सिंदूर ! उसकी मांग का ,
ठगा सा रह गया मैं अपने '' रक़ीब ''से।

