शोले जिंदगी के
शोले जिंदगी के
अपनी जिंदगी की फिल्म
शूट करता जाता हूं रोज़
नये नये किरदार लेता हूँ
उठाता जाता समय का बोझ
यहाँ मैं खुद ठाकुर भी गब्बर भी
खुद लगाई आग भड़काए शोले
आवाज़ बनाकर बसंती को भरमाया
खुद बना बुद्धु बनकर बम बम भोले
मैं ही था जो पीकर टंकी पर चढ़ा था
मौसी को समझाने भी मैं ही गया था
वो सांभा बन मैं ही थामे था बंदूक
कालिया बन नमक मैंने ही खाया था
लालटेन जलाने बुझाने वाली भी थी
चुप बन कर बैठी थी खुद मेरे भीतर
घोड़ा हाँकने वाली अल्हड़ हसीना भी
मन के कोने में आ जाती थी नज़र
ऐसी ही फिल्म चलती है मेरे मन में
रोज़ जब देखता हूँ सपने बड़े बड़े
सुनो जी अब घर नहीं जाना है क्या
सब्जी मंडी में आवाज आई खड़े खड़े।