डिजीटल परिवार (Day7)
डिजीटल परिवार (Day7)
1 min
366
एक छत के तले,
भिन्न दायरों में बंटे
अब नहीं मिलते,
माँ बाप बच्चे
सबके कमरे अलग,
बाथरूम सटे
सबके मोबाइल,
हाथों में फंसे
शायद ही बदला है
किसी ने समाज को
जितना मोबाइल ने
दुनिया को बदला है
सब के पसन्द की,
सामग्री मिलती है
हर आँख फोन के,
स्क्रीन से चिपकी है
आपस की बातें भी,
मैसेज से होती हैं
स्विग्गी, जो़मेटो ही,
माँ की रसोई हैं
आसमुद्र अन्तराल,
मोबाइल से घट गए
लखनऊ के बन्दे,
लंदन से जुड़ गये
लेकिन परिवार आज,
टुकड़ों में बँट गए।