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Arunima Bahadur

Abstract

2.9  

Arunima Bahadur

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पर्दा

पर्दा

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पर्दा पड़ा था दरवाजे पर।कुछ महिलाएं कुछ बाते कर रही थी।दूसरो की घरेलू बातो में आंनद ले रही थी।केवल आलोचनाओ में आनद आरहा था उन्हें।

उन्ही में एक थी स्वप्ना ,गोयल परिवार की बड़ी बहू,सभी मे लोकप्रिय बात करने में, सभी बातों का आनंद ले रही थी।और हँसी का माहौल हो रहा था।एक आदर्श बहु के रूप में लोकप्रिय।

सेवा में संलग्न,एक शालीन बहु के रूप में उसने अपनी पहचान बनाई थी।सास सीमा कुछ ज्यादा बातचीत नहीं करती थी,तो उतनी लोकप्रिय नहीं थी।घर मे एक और थी नई बहू चेतना।जो अभी पर्दे में नई नवेली दुल्हन थी।कभी बाहर नहीं दिखती थी।

अचानक से स्वप्न बोली,बहुत थक जाती हूं आजकल।अकेली जान अनेको काम।कोई कुछ नहीं करता।मैं कुछ न करू तो घर मे एक चम्मच भी साफ न हो।देखो न,चेतना कुछ कर नहीं पाती।पता नहीं क्यो सुस्त सुस्त रहती हैं।रोगिणी हैबीमार ससुर वो तो।गलत शादी हो गयी मेरे देवर की।अब क्या करे झलना ही है।

अचानक से एक हवा का झोंका आया,जो अंदर की तस्वीर बया कर गया।बीमार सास ससुर की सेवा में चेतना व्यस्त थी।घर का सारा काम जल्दी जल्दी निपटा के,सबको सम्हाल रही थी,एक मुस्कान के साथ।

बाहर सभी महिलाएं वास्तविकता जान गई।बस सपना को देख मुस्कुरा रही थी।और मौन में रह कर एक दूसरे को।


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