परछाई
परछाई
जब खुदकी परछाई देखी
तो लगा कि सपनों की दुहाई देखी
कदम दर कदम बढ़ती रही जो
खुद के भीतर एक नामुमकिन सी जुदाई देखी
न जानें कितनी बार देखी
एक आकृति में सुकून की छाया आरपार देखी
इस चित्र की भले कोई विज्ञानकथा
फिर भी उसमें एहसासों की मारामार देखी।