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संजय असवाल "नूतन"

Fantasy

4  

संजय असवाल "नूतन"

Fantasy

कोई अपना !

कोई अपना !

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कोई अपना दुनियां से जब विदा होता है 

दिल जार जार बहुत रोता है

किस्मत रूठ सी जाती है

दर्द के सैलाब में डूब जाती है........


आंखों से नीर झर झर बहने लगते हैं 

दर्द की इंतहा कहने लगते हैं

ह्रदय की पीड़ा जब विकट हो जाती है

उनका न होना ही बहुत रुलाती है........


सांसें रुक रुक के चलने लगती है

खामोशी हर ओर बहने लगती है 

जाने वाले चले जाते हैं सब कुछ छोड़ कर मगर

यादें उनकी फिर क्यों हमें तंग करने लगती है.......


सब कुछ ठहर सा जाता है

दिल का कमरा खाली हो जाता है

दूर हवाओं में बस सरगोशियां रह जाती हैं

जाने वाले तेरी याद बहुत सताती है......


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