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Sandeep Kumar

Fantasy Others

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Sandeep Kumar

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परंपरा की दुहाई के कारण छोटे..

परंपरा की दुहाई के कारण छोटे..

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परंपरा की दुहाई के कारण

छोटे मुंह खोल ना पाता है

जो बोलना चाहिए

वह बोल ना पाता है....


सत्य स्वर भी कभी-कभी

उचित समय में घोट लेता है

गलत को स्वीकार कर

तपस हृदय में भर लेता है

परंपरा की.....


बड़े, बड़ी ही चाव से

अपने वक्तव्य को रख देता है

झूठी शान को, बड़ी अदब से

ओढ़ सलोना चल देता है

परंपरा की.....


मान मर्यादा की जंजीरों में

जकड़े उसकी रोम-रोम रह जाता है

बेचारा उफ़ तक भी 

करने से पहले घबराता है

परंपरा की.....


यह जुल्म नहीं तो और क्या है

यह आघात नहीं तो और क्या है

जो उसे अपने मन का करने को ना मिलता है

रोब , उसी पर रोज-रोज झड़ता है

परंपरा की.....



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