मेरा सपना
मेरा सपना
खुली नज़र का यह मेरा सपना
सज़ा रहा हूँ मैं अपने आँखों में
जहाँ दे रहे है मुझे लोग ताने
जहाँ कोई नहीं है मेरा अपना
जरा तो सोचा कैसे रहूँ मैं ऐसे
जहाँ मेरी कदर नहीं है
जहाँ किसी को मेरे सपनों की नहीं पड़ी है
इन जिल्लतों का है बोझ दिल में
कुछ करना है अपने दम पर
कब तक रहूँगा बोझ बनकर
मैं भी क्यूं नहीं कुछ कर पाता हटकर
पिता, दादा और बहन के घर में रहा पराया
है एक मेरा सपना हो घर मेरा अपना
जहाँ रह सकूंगा सर उठा कर
नहीं रहूँगा बोझ किसी पर
अपने मन का मालिक होऊंगा
यह है मेरा एक सपना
इंतज़ार है कब होगा मेरा एक घर अपना।