प्रारब्ध कर्मों के
प्रारब्ध कर्मों के
गिर पड़ा है जो अंधेरे से टकरा कर
अंधेरे कुएँ में ।।
एक बार तो किसी को तो उसको
उठाना पड़ेगा ।।
माना कि जीवन बहुत ही विषम है
माना की जीवन बहुत ही विषम है ।।
मगर इतना सहारा तो देना पड़ेगा ।।
थक गया हो जो लहरो से लड़ते हुए
आत्म संयम तो उसका बढ़ाना पड़ेगा ।।
माना की कोई सहारा न देगा ।।
फिर फरिश्ता तो कोई बुलाना पड़ेगा ।।
फिर फरिश्ता तो कोई बुलाना पड़ेगा ।।
ठेल कर किसी को मुश्किल घड़ी में
कोई दामन अपना बचा न सकेगा ।।
तुम ना करोगे अगर काम ये तो
किसी और को तो आगे आना ही होगा ।।
गिर पड़ा है जो अंधेरे से टकरा कर
अंधेरे कुएँ में ।।
एक बार तो किसी को तो उसको
उठाना पड़ेगा ।।
अनजान बनकर निकल जाएगा जो
इलज़ाम इसका भुगतना पड़ेगा
प्रारब्ध कर्मों के होते यहीं हैं
एक एक का बदला चुकाना पड़ेगा ।।
गिर पड़ा है जो अंधेरे से टकरा कर
अंधेरे कुएँ में ।।
एक बार तो किसी को तो उसको
उठाना पड़ेगा ।।
