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Vimla Jain

Tragedy Action

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Vimla Jain

Tragedy Action

मैं दिल का बुरा नहीं हूं

मैं दिल का बुरा नहीं हूं

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प्रस्तावना

दो दोस्त खास दोस्त एक दिल से सोचता है एक दिमाग से सोचता है दिल से सोचता है। दिमाग से सोचने वाली की हर समय मदद करने लगता है और समय-समय पर उसकी जरूरत हो तो पैसे देता रहता है मगर एक बार उसे दोस्त को जो पैसे की जरूरत पड़ी तो उसने अपने दोस्त को बेस्ट दोस्त से पैसे वापस मांगे तो उसने उसकी विरुद्ध में बहुत अफवाहें क्योंकि वह दिल से नहीं दिमाग से काम करता था दिमाग में खोट थी मदद लेना तो चाहता था मगर उसके लिए वह पैसे लौटाने की उसकी मंशा नहीं थी


मेरे शब्दों में मेरी कविता


क्या तुम नहीं जानते मुझे, पहचानते मुझे ,कि मैं दिल का बुरा नहीं हूं।

फिर भी तुमने कैसे सब में यह फैलाया है कि मैं दिल का बहुत बुरा हूं।

 मैं दिल का बहुत बुरा हूं क्या एक बार तुमने यह सोचा है कि परिस्थितियां बुरी हो सकती है ।

इंसान बुरा नहीं मैं दिल का बुरा नहीं हूं।

मजबूरी भी कुछ चीज होती है। 

क्या मैंने बुरा किया है।

जब तुम्हारी मजबूरी थी तब मैंने भी तो मदद करी थी।

उसी मदद की तुम से गुहार लगाई तो मैं बुरा हो गया।

जब-जब आई तुम पर मुसीबत मैंने हमेशा बाहें फैलाई गले लगाया।

बोला मैं हूं ना तनिक भी संकोच मत ना करना।

हर तरह से तुम को मुसीबत से निकाला ।

तब तो तुम्हारे लिए मैं बहुत दिल का अच्छा था।

तो आज क्या हो गया है तुमको ।

जब मैंने तुमसे थोड़ी वही मदद जो तुमको करी है वापस मांगी।

तो बदले में तुमने मुझे बदनामी दी।

तुमने मुझे बदनाम किया, 

मेरा बुरा हाल किया, मेरा अपमान किया ।

मैं दिल का बुरा नहीं हूं।

बस परिस्थितियों का मारा हूं ।

अपना ही धन मांग रहा हूं।

कहां तुमसे तुम्हारा कुछ मांग रहा हूं।

अब तो तुम लौटा दो मुझको जो मेरा है वह दे दो मुझको ।

ना करो तुम मुझे बदनाम, मैं दिल का बुरा नहीं हूं।

अगर तुम ऐसा ही करोगे, तो उठ जाएगा विश्वास सबका दोस्ती और नैतिकता से।

इसलिए ए दोस्त ना करो तुम मुझे बदनाम ।

मैं दिल का बुरा नहीं हूं।



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