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Madhu Vashishta

Action Inspirational

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Madhu Vashishta

Action Inspirational

बेटी की मांए

बेटी की मांए

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बेबस रहती है बेटी की मांए

इस क्रूर संसार में बेटी को कैसे लाएं।

वंश वृद्धि तो हुई नहीं 

कोई पूछे तो कैसे बतलाएं?


नन्हे हाथ हिलाती बिटिया,

सबकी गोद में आने को आतुर

उसकी इस नन्ही प्यारी मुस्कान को सबकी नजरों से कैसे बचाएं?


बेबस रहती है बेटी की मांए।

घर का आनंद उमंग प्रकाश

बेटी तो है बहुत ही खास।

स्कूल भी जाए तो दिल घबराए

जब तक वह घर वापस ना आए।


अपमान पीड़ा समझौता जो कुछ भी सहा है 

मां ने ,

अपनी इस नन्ही गुड़िया को उसी समाज में जीना कैसे सिखलाएं?


मां को यह चिंता हर पल सताए।

कैसे अपनी बेटी को निडर और निर्भय बनाएं ‌?

कैसे प्यारी गुड़िया को निर्भया होने से बचाए?


देख कर सुबह क

ा समाचार पत्र मां का मन तो धक से रह जाए।

दूर आकाश में उड़ने को आतुर बेटी के पंखों में कैसे मजबूती लाएं।


पूरी कोशिश कर ली मैया ने।

घर का काम हो या हो पढ़ाई,

सिलाई और कंप्यूटर भी लगी सिखाने।


अपनी होकर भी पराई है वह

पराए घर में भी तो पराई जाई ही वह।

उसको उसके ही घर में स्थापित कैसे कर पाएं।


संशय में जीती है बेटी की मांए।

चाह कर भी कुछ उसके लिए कर ना पाएं।


बेबस होती है बेटी की मांए ।

यूं ही सोचते परवाह करते एक दिन बेटी बन जाती है मांए ।


बेबस होती है बेटी की मांएं।

भले ही बेटी कितनी भी काबिल हो।

भले ही उसकी उड़ान ऊंची हो

लेकिन फिर भी

मां की अपनी होती है चिंताएं।


बेबस होती है बेटी की मांए ।


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