अपराधी आत्मा
अपराधी आत्मा
जब लगे कभी आत्मा पर बोझ भारी।
किया हो कभी ऐसा काम जो कभी करना ना हो ।
जो नैतिकता में ना आता हो अपराध में आता हो।
भले वह छोटा हो या बड़ा हो काम तो काम है अपराध तो अपराध है।
हमने किसी को मन वचन और काया से जो हानि पहुंचाई हो
या हमने किया हो किसी के प्रति अन्याय तो हमारी आत्मा कचोटती है
और अपने आप को उसका अपराधी मानती है।
पर हमको उस अपराध के प्रति सजग करती है जो हमने किया होता है।
ऐसे समय में उस आत्मा को शांत करने का एक ही तरीका है ।
जिसके प्रति हमने अन्याय करा है उसके लिए न्याय करो।
उसके अन्याय की भरपाई करो।
क्षमा मांगो और वापस ऐसा न करने का प्रण करो।
प्रायश्चित करो तो तुम सुकून से जी सकोगे और आत्मा भी अपराध मुक्त हो जाएगी।
यह सारी बातें तो छोटे छोटे अपराधों की है।
बड़े अपराध वाले अपराधी तो अपने आप को गुनहगार मानते ही नहीं।
इसलिए उनके लिए उनकी आत्मा का कचोटती ही नहीं।
इसलिए हम उनको कुछ कह सकते नहीं बड़े-बड़े रिश्वतखोर रिश्वत लेते जाते हैं
मगर उनके पेट भरते ही नहीं, और वे लोगों के काम करते ही नहीं।
मगर जब कभी ठोकर लगती है तो एकदम नीचे आ जाते हैं।
तब उनकी आत्मा उनको कचोटती होगी और अपराधी आत्मा बोलती होगी।
कि यह हमने क्यों किया।
बहुत सारे खूनी आतंकवादी कभी अपने आप को अपराधी मानते ही नहीं
उनकी आत्मा उनको कचोटती की नहीं।
मैंने ऊपर
जो लिखा है छोटे-छोटे अपराधों की बात है, जो हम वाणी विवेक से करते हैं।
नीचे जो लिखा हुए बड़े-बड़े अपराधों की बात है जिनकी कभी आत्मा कचोटती ही नहीं
जिनकी आत्मा मोटी चमड़ी की होती है और लोगों को नुकसान पहुंचा जाती है।
ड्रग, शराब, सिगरेट और न जाने क्या-क्या अपराध करते हुए नई पीढ़ी को बर्बाद कर जाती है
क्या कहना है आपका अपराधी आत्मा के बारे में।
हम तो जैन धर्म में मानने वाले हैं।
इसीलिए हम तो मन वचन काया से किसी को तकलीफ नहीं देते हैं
और तकलीफ देते हैं तो दिल से क्षमा मांग लेते हैं।
हमेशा नीति नियम नैतिकता से जीने वाले आत्मा पर कोई बोझ हम नहीं रखते हैं
इसीलिए अपने आप अपनी आत्मा को अपराध मुक्त रखते हैं।