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Abhilasha Chauhan

Tragedy Others

3  

Abhilasha Chauhan

Tragedy Others

पनघट

पनघट

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रीती गागर, प्यासे पनघट,

गोरी भटके लेकर घट।

कैसा आया है दौर सखी,

पानी को तरस रहे पनघट।


अब सपने बन गए हैं पनघट,

वो हँसी-ठिठोली वो जमघट।

वो छल-छल छलकती गगरी,

वो मनमोहनी गाँव की गुजरी।


अब रीते गागर गोरी के,

अल्हड़ गाँव की छोरी के।

भटकती फिरती है दर-दर,

जबसे सूख गए हैं पनघट।


सूख गया अब भूमि जल,

पनघट बन गए बीता कल।

प्रकृति से ये खिलवाड़ क्यों ?

पनघट को किया अनदेखा क्यों ?


क्यों जल को नहीं सहेजा है?

क्यों कल को किया अनदेखा है?

जैसे रीती गगरी, प्यासे पनघट,

वैसे सूख न जाए ये जीवन-घट!!



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