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Abhilasha Chauhan

Abstract

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Abhilasha Chauhan

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प्रकृति के रंगमनहरण घनाक्षरी

प्रकृति के रंगमनहरण घनाक्षरी

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घटा घनघोर छाई,चली खूब पुरवाई।

धरती का मिटा ताप,आनंद उठाइए।।

पेड़-पौधे हरे-भरे,सरि-सरोवर भरे।

देख-देख हरियाली,तपन मिटाइए।।

मोर वन नाच रहे,चातक पुकार रहे।

बाग-बाग फूल खिले,ध्यान न हटाइए।।

प्रकृति बिखेरे रंग, देख-देख होते दंग।

जीवन का सार यही,इन्हें न कटाइए।।



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