प्रकृति के रंगमनहरण घनाक्षरी
प्रकृति के रंगमनहरण घनाक्षरी


घटा घनघोर छाई,चली खूब पुरवाई।
धरती का मिटा ताप,आनंद उठाइए।।
पेड़-पौधे हरे-भरे,सरि-सरोवर भरे।
देख-देख हरियाली,तपन मिटाइए।।
मोर वन नाच रहे,चातक पुकार रहे।
बाग-बाग फूल खिले,ध्यान न हटाइए।।
प्रकृति बिखेरे रंग, देख-देख होते दंग।
जीवन का सार यही,इन्हें न कटाइए।।