पंचम वेद संविधान
पंचम वेद संविधान
चौराहों और तिराहों पर,
एक मूर्ति खड़ी दिखती अक्सर!
मोटी सी पोथी हाथ लिये,
संकेतित करती नव अवसर!
बाबा साहब की उठी तर्जनी,
इंगित करती कुछ रत्न प्रति !
गणतंत्र दिवस संदेश सुना ,
जाग्रत करती नव चेतन प्रति!
अरे आज हम सबने ही,
अनमोल रत्न विधिवत पाया!
बन गये पूर्ण सत्ताधारी ,
जन जन ने वांछित वर पाया !
लिंकन साहब की परिभाषा ,
कर रहा सत्य यह संविधान !
बड़े और छोटे का अंतर ,
मिटा रहा यह संविधान !
हम शासित भी हम शासक भी,
हम स्वामी भी हम सेवक भी !
जो सोचेंगे कर सकते वह,
हम थिंकर भी प्रायोजक !
हाँ याद सदा रखना होगा,
यह धरती है सबकी माता !
कोई हलधर कोई मुरलीधर,
लेकिन... दोनों सच्चे भ्राता !
