बापू जी की अमर कहानी
बापू जी की अमर कहानी
एक शतक एक दशक पुरानी,
बात कह रही आज जुबानी।
आओ बच्चों तुम्हें सुनाऊँ ,
बापू जी की अमर कहानी।
भारत के पश्चिम का बच्चों,
एक राज्य गुजरात कहाता।
अश्व उदधि जिसके पश्चिम में,
छू कर तट निश दिन लहराता।
इसी राज्य में एक नगर है,
जिस पोरबंदर कहते हैं।
ज्ञानवान कर्मठ सुशील,
धर्मय वणिक जिसमें रहते हैं।
इसी नगर में गाँधी जी ने
वर्ष अठारह सौ उनहत्तर।
जन्म लिया था सुनो भाइयों,
रही उसी दिन 2 अक्टूबर।।
एक शतक.. .....
कावा गाँधी के आँगन में,
कुछ रेंग -रेंग, कुछ सरक सरक।
बढ़ चला लगा चलने देखो,
डगमग कदमों से टरक टरक।।
आ गया नगर में नाटक तब,
उस हरिश्चंद्र सत्यवादी का।
देखा गाँधी ने कर डाला ,
संकल्प तुरत सत्यवादी का।।
पढ़ने लिखने में अरुचि रही,
रुचि रही मातु -पितु सेवा की।
शैशव की सीख युवा बनकर ,
आदर्श बनी जन सेवा की।।
एक शतक एक दशक.......
बैरिस्टर बन वे चले गए,
दूर देश अफ्रीका में।
ले टिकट चढ़े जब फर्स्ट क्लास
धक्के खाए अफ्रीका में।।
वे समझ गये काले रंग को,
अधिकार न गोरे देते हैं।
शासक शासित को लोग कहाँ,
स्वीकार भला कब करते हैं।।
इतिहास साक्षी है बच्चों,
शासक शासित का यह अंतर।
मिट गया मिटाया गाँधी ने,
संघर्ष किया चाहे दुस्तर।।
एक शतक एक दशक........
दूर देश से लौटे गाँधी,
संग सुयश का भार लिये।
पाया भारत माता रोती ,
दु:सह कष्ट अपार लिये।।
हो उठा विकल माता प्रेमी,
हुंकार उठा अब क्विट इंडिया।
बच्चे गरजे बूढ़े गरजे,
क्विट इंडिया क्विट इंडिया।।
सुनो बालकों एक अचरज,
बूढ़े गाँधी एक कर गये।
15 अगस्त सन सैंतालीस को,
गोरे शासक कूच कर गये।।
