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Sandeep Gupta

Romance

3  

Sandeep Gupta

Romance

पिया मिलन को चली मैं

पिया मिलन को चली मैं

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नीर से भरी हूँ,

बीच बादलों,

आसमान में, 

अटकी हूँ, 

लटकी हूँ।


धीर से भरी हूँ,

बनके फुहार,

ताप धरती

का हरूँ मैं,


बनके सावन 

की झड़ी,

सिंगार वसुंधरा

का बनूँ मैं।


नेह से भरी हूँ,

आरोहित हो,

अम्बर से, 


स्वाति नक्षत्र की 

बूँद बन,

मोती जनने की 

चाह लिए,

धरा को चली मैं।


अम्बुज सुता,

वसुधा सखी,

रत्नाकर प्रिया मैं !


बूँद एक नन्ही सी,

नदी बनने की चाह लिए,

छोड़ घर बाबुल का,

पिया मिलन,

को चली मैं।


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