पिय वेदना
पिय वेदना
सम्मुख हों तौ तिय रार करौ भूकम्प सो कम्पन आंगन में।
पूरनमासी बस द्वै चार बरस अब ज्वालामुखी हा खन खन में।।
घरबार गृहस्थी आधी बटी दिन रात खटैं कोल्हू बैला,
गर दूर प्रखर तौ चित्त बसे संग डोलै नगर खेत वन में।।
त्रिशँकु गती अस्थिर मन मति इत कूप अंध उत खाई गहन।
रोज़ी रूजगार मँह उमर गयी कहौ कैसें होय महँगाई सहन।।
चौथी के मटका सी सजधज हम बने सुदामा प्रखर मौन,
अब चले चवन्नी अधेली में बस जूझ रहे और करें वहन।।
