पिता श्री
पिता श्री
खलती मुझको रही
हमेशा कमी यही
जब कभी भी धूप
जमाने की आ पड़ी
देखा जब किसी को
अंगुली पकड़े कभी
मन मसोसे रह गया
ये कमी बहुत खली
लडखड़ाया जब भी मै
कोई थामने आया नही
मन कसक कर रह गया
याद भर आयी चली
भीड़ में लोगों की जब
तबीयत अपनी घबराई
कमी आपकी बहुत खली
आँखे भर हैं कडुवाई
जब भी मन की बात
मुँह तक ना आ पायी
मन मारे रह गये हम
याद फिर फिर आयी
हर पल अनुभव की
एक रिक्तता पिता जी
खलती मुझको सदा रही
बस आपकी कमी।