पिशाच बोलते नहीं
पिशाच बोलते नहीं
बेबस थी लाचार थी
खड़ी वो सरे बाजार थी
वो वहशी थे दरिंदे थे
या वो नर पिशाच थे
ना थी लाज शर्म कोई
ना दीन ना ईमान कोई
उसके चीरहरण का
बन रहे थे गवाह कई
ना रगों में कोई उबाल था
ना जुबां का कोई काम था
सवाल उठ रहा था कहीं
पिशाच वे थे या हम थे
क्योंकि...
पिशाच बोलते नहीं...
पिशाच बोलते नहीं...!!!