पिंजरे में कैद पंछी की व्यथा
पिंजरे में कैद पंछी की व्यथा
पिंजरे में कैद पंछी परतंत्र की बेड़ियाँ पहने रहता है,
बस मुट्ठी भर दाने से उसका पूरा जीवन चलता है,
सोने के पिंजरे में कैद ह्रदय आहत उसके हो जाते,
पर खुला नीला वो आसमान उसे कहाँ मिलता है,
पिंजरे में बंद कर पक्षी को जाने क्या संतोष मिला,
सत्य बहुत ही छोटा लगता पर सब यहाँ दिखता है,
ना उसने देखी कभी आम और पीपल की डाली,
पिंजरे में बंद रह अपने पंखों को बस फड़फड़ाता है,
ना कभी देखा आकाश ना कभी क्षितिज ही देखा,
रात के अंधेरे में जुगनुओं का प्रकाश कहाँ दिखता है,
अपने साथी से मिलने का उसका मन करता होगा ,
इस लालसा में शायद कई बार हृदय उसका धड़कता है,
इस पिंजरे में फंसकर वो अपना सब कुछ गंवा बैठा,
अब तो ना कोई सपना उसकी आंखों में पलता है!!