फर्श से अर्श तक।
फर्श से अर्श तक।
इंसान को,
कोई न कोई,
प्रोत्साहित करने वाला,
हर पल चाहिए।
वो कोई भी व्यक्ति हो सकता,
आप उसके,
विभिन्न गुणों से,
प्रभावित हो सकते।
उसकी अच्छाइयों से,
प्रभावित हो सकते,
उसकी योग्यता से,
अचंभित हो सकते,
उसका अनुसरण कर सकते,
अंत में उसे,
अपने जीवन का,
हीरो मान सकते।
मेरे जीवन का हीरो,
भारत का इकलौता,
गोल्ड मैडलिस्ट एथलीट,
नीरज चोपड़ा।
उसकी कहानी बहुत दिलचस्प,
एक मध्यम वर्गीय परिवार में पैदा हुआ,
बचपन में,
शरीर भारी था,
सब मजाक करते थे,
लेकिन फिर,
किसी समझदार,
व्यक्ति ने दिया सुझाव,
क्यों नहीं फैंक कर देखते जैवलिन।
पहले काफी कठिनाई आई,
फिर थोड़ी सी,
कामयाबी मिली।
फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा।
आगे बढ़ते गये,
विजय पताका गाड़ते गये।
गांव में नहीं थी सुविधा,
पास के शहर जाते थे,
प्रयास करने।
धीरै धीरे आगे बढ़,
एक दिन ओलंपिक्स की फतेह।
ऐसा इंसान,
सचमुच हीरो कहलाने लायक,
जो फर्श से हुआ शुरु,
और आज अर्श पर है।
ऐसी दमदार कहानी,
किसी महानायक की ही,
हो सकती।
क्यों न इस कहानी को,
विद्यार्थियों के पाठ्यक्रम में डाला जाए,
और उनके रील हीरो से नहीं,
बल्कि रीयल हीरो से,
मिलाया जाए।