राम का दुख सीता से ना देखा गया
राम का दुख सीता से ना देखा गया
राम का दुख सीता से ना देखा गया
साथ देने के लिए वनवास लिया
पर दुख का कारण बनी सीता
राम को वियोग सहना पड़ा
जीत कर जब लौटे अयोध्या
समाज को ना भरोसा हुआ
एक धोबी के कहने पर
सीता का परित्याग किया
बार अग्निपरीक्षा सीता नहीं देगी
राम को मगर कष्ट सहना ही होगा
कभी सीता के वियोग में तो कभी
पिता के वियोग में जीना ही होगा
हैं नहीं पक्षधर कोई ये एहसास होगा
खींची मिलेगी पग पग लक्ष्मण रेखा
ये आभास होगा
सीता की ही किस्मत में क्यों लिखी है अग्नि परीक्षाएँ
राम को क्यूँ वनवास होगा
हाल कुछ ऐसा ही रहा है अपने जीवन में
चाहत को तरसता फिरा हर गुलशन में
लुटेरा बन के आया ये समाज
कुछ बचा ही नहीं जीवन में
एक साया अपना भी अब बेवफा है चला
जहाँ से उम्मीदें थी वहीं से गया छला