सुर और वाणी
सुर और वाणी
घेरे हुये शूल हैं हर दल बन फूल
ग्रहण लगे जीवन में मेधा इंदुरेख।
आध्या और आलोक की फणी अरिष्ट
पल-पल उद्दीप्त हो गर्हित नम्यता और सोच।
तुच्छता से कर गये क्षुद्र और छिछोर
कुम्हलाये तरुवर जीवन के जोत।
मुरझाई डाली रसहीन रहे प्रभुभोज
भरे नयन निहारे बागवां अनम्भ।
हृदय शिखाओं में पनपे पल्लव ज्वाल
फूटी वाणी सुर की हो – होकर उत्कल।