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Satish Sharma

Classics

4  

Satish Sharma

Classics

सुख दुख

सुख दुख

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सुख दुख बादल जैसे हैं

आते हैं और जाते हैं

ढंग भी कैंसे कैसे हैं,

सुख दुख बादल जैसे हैं


बैठे बैठे रात कट गई

रोते सोते  दिन बीता

दुख का पहरा है घर में

तो रस घट लगता है रीता

आँसू भरे नयन सागर के

रंग भी कैसे कैसे हैं,

सुख दुख बादल जैंसे हैं


करुण हृदय में दर्द भरा है

अश्रु नीर छल छल बहते

अनहोनी के साये में वे

मन की व्यथा कहाँ कहते

अपनों की पहचान हुई ये

संग भी कैसे कैसे हैं,

सुख दुख बादल जैंसे हैं


गम की कट जाती हैं रातें

सुख का सूरज भी आता

नए उजालों के सपनों में

जीवन नया गीत गाता

धैर्य धरो जानो कुसमय के

तंग भी कैसे कैसे हैं,

सुख दुख बादल जैसे हैं।


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