STORYMIRROR

Satish Sharma

Abstract

3  

Satish Sharma

Abstract

कैसा ये आदमी

कैसा ये आदमी

1 min
229


कैसा ये आदमी का चलन आज हो गया ।

चूहे को चिन्दी क्या मिली बजाज हो गया।।


कल तक जो हाथ जोड़ वोट मांगता फिरा ।

अब जोड़ो उसके हाथ उसका राज हो गया।।


जिसके इशारे एक पर धन बरस जाता था ।

वो दाने दाने के लिए मोहताज हो गया ।।


हम घर के कवि लिखते रहे कविता रात भर ।

और सिद्ध बाहर का तुकबंदी बाज हो गया ।।


कौए की कांव सुनके मुर्गा बांग दे रहा ।

अब उल्लुओं को पूजने का रिवाज हो गया ।।


दूर  ही  रहना वो&nbs

p; बड़ा कलाकार है ।

उसका गुलाम राग ताल साज हो गया ।।


गीदड़ भी आज इतने  हुनरदार बन गए ।

लेते हैं शेर मशविरा स्वराज हो गया ।।


वो खानदानी रईस था जो भूखों मर गया ।

ये जन्मों का हरामखोर था सरताज हो गया ।।


चुगली चपाटी करके कब तक पुजोगे तुम ।

दामन के कोढ़ मैं तुम्हारे खाज हो गया था ।।

               



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract