STORYMIRROR

RAHUL ROHITASHWA

Classics

4  

RAHUL ROHITASHWA

Classics

पगडंडी से सागर पार

पगडंडी से सागर पार

1 min
272

पग दंडी से सागर पार

यह है हिन्दी का विस्तार

भारत की है यह राष्ट्र भाषा

पर दुनिया के कंठ का हार


गीत कहानी महाकाव्य से

इसका भरा हुआ है भंडार

इसके सागर में डूबे तो

पाएंगे हम अद्भुत संसार


तुलसी सुर शुभद्रा सबने

इसमें गढ़ाअपना हीरक हार

दिनकर पंत निराला जी से

यह चोटी पर हो गयी सवार


हरिश्चंद्र जी इस भाषा के

सबसे पहले है सूत्रधार

इसकी महिमा गूंज रही है

दिग दिगंगत मे पार


इसकी मान बढ़ाएँगे हम

रचनाओ मे दे कर सार

विश्व झुकेगा चरण पे इसके

पाएगा तब नव रस धार।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Classics